ना
जाने कितनी आवाजें उठी होंगी
दिल्ली के इस जंतर-मंतर
से...ना
जाने कितने लोगों ने इंसाफ
के लिए अपनी आवाज बुलंद की है
इसी जंतर-मंतर
से...और
तो और गूंगी बहरी सरकारों को
जगाने के लिए आम जनता के साथ
दिन-रात
जागा है यही जंतर-मंतर...अनगिनत
इंसाफ की इबारतों को गवाह ये
जंतर-मंतर...उस
काले अध्याय का भी गवाह बन गया
है...जब
आजाद भारत में समाज,
सिस्टम,
सरकार
और हजारों समर्थकों की मौजूदगी
में एक किसान की मौत तमाशा बन
गई...या
यूं कहिए कि,
राजस्थान
के दौंसा के इस गरीब गजेंद्र
'आप'
की
सियासी नौटंकी लील गई...
हजारों
की भीड़ के सामने एक किसान
खुदकुशी कर रहा था...दिल्ली
पुलिस के सामने एक किसान खुदकुशी
कर रहा था...और
तो और मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल
के सामने एक किसान खुदकुशी
कर रहा था...सबकुछ
आंखों के सामने हुआ..सबकी
आंखों के सामने हुआ...वो
मरता रहा सब देखते रहे...शायद
वो इस बेशर्म सियासत का मोहरा
बना था...और
सियासत के तमाशें में तबाह
हो गया परिवार...बाकी
बची हैं तो विलाप करने के लिए
पत्नी और तीन बड़ी बेटियां...बाकी
बेशर्म सियासत तो हो ही रही
है बड़ी बेशर्मा के साथ....
किसान
के नाम पर रैली चल रही थी...मंच
पर केजरीवाल किसानों के मसीहा
होने की कसम खा रहे थे...और
मंच से 25
या
30
मीटर
की दूरी पर किसान की मौत का
मंजर चल रहा था...लेकिन
मंच पर चल रहा भाषण नहीं
रुका...गजेंद्र
मर गया...
अस्पताल
से तो बस मौत का सर्टिफिकेट
मिलना था...अब
मुखिया जी अस्पताल पहुंचे तब
तक गजेंद्र दुनिया से जा चुका
था...वो
तो जा चुका था..लेकिन
रहनुमाओं का आना जाना अब शुरु
हुआ...जाते
जाते गजेंद्र सियासत का सामान
छोड़ गया...
खेल
तो अब शुरु हुआ...राजनीति
का....बेशर्मी
का...एक
समय था केजरीवाल बिजली के तार
काटने के लिए खंभे पर चढ़ गए
थे...उनके
नेता कह रहे हैं ,
कि
क्या मुख्यमंत्री पेड़ और
पेड़ की शाखाओं पर चढ़ते...अरे
साहब हम भूल गए थे कि वो अब आम
आदमी नही जिल्ले इलाही हो गए
है...वो
क्यों जहमत उठाने..वैसे
भी एक आम आदमी की जिंदगी क्या
मायने रखती है...चंद
रुपयों का मुआवजा सब भुला देगा
ना...
लेकिन
आजाद देश में ये पहली बार
हुआ...शायद
पहली बार,
समाज
सिस्टम और सरकार के सामनें
ये लाइव खुदकुशी थी...
बिजली
का तार काटने के लिए खंबे पर
चढ़ने वाले साहब,
एक
पेड़ पर नहीं चढ़ पाए...उनका
सिस्टम नहीं चढ़ पाया...सरकार
नहीं चढ़ पाई....हां
जुबान के जोर में कोई कमी नहीं
हैं...वो
आसमान से की उंचाई को छू रही
है...गजब
की लफ्फाजी है इनके लफ्जों
में...
लेकिन,
ऐसी
लफ्फाजी से तो फिर मरेगा कोई
गरीब किसान...जानते
हैं कैसे मरा किसान...किसने
मारा गरीब गजेंद्र को...इन
सारे सवालों का एक ही जवाब
है...गुनहगार
है सियासत गरीब गजेंद्र की
मौत की....शायद
इस देश के किसानों को ये समझ
आ जाए...
कि
उनका कोई हितैषी नहीं..ये
तो वोट की हिमायत है...बाकी
कोई मरता है तो मरता रहे....
वाह
री सियासत...वाह
रे सियासतदां
(साजिद अली राणा)
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