'दलितो आज फिर तुम पर प्यार आया है'


एक हिंदी फिल्म का गाना है कि, आज फिर तुमसे प्यार आया है, बेहद और बेशुमार आया है...सियासत की मौजूदा बिसात दलितों को लेकर हर सियासी दल यही सुर सजा रहा है...2019 के चुनाव से पहले अचानक सभी दलों का दिल दलितों के लिए जोर-जोर से धड़कने लगा है, ज़ुबान पर जन और ज़ेहन में जात...2019 की सियासी बिसात का ये वो आलम है...जहां तमाम सियासी दल, दलितों को अपने सीने में बसाने को आतुर हैं... कांग्रेसी की बात करें तो आरक्षण और एससी-एसटी के मुद्दे पर बीजेपी से दलितों की नाराजगी में वो अपने लिए संजीवनी खोज रही है...दलितों का दिल जीतने की जुगत में राहुल गांधी ने दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम से संविधान बचाओं अभियान का शुभारंभ किया है, और खास बात ये कि, ये अभियान अगले साल 14 अप्रैल यानि अंबेडकर जयंती तक चलता रहेगा...राहुल गांधी ने पार्टी के लोगों को साफ संदेश दिया कि, ‘बीजेपी की दलित विरोधी नीतियों को गांव-गांव तक पहुंचाएं’ दलितों पर हक जताते हुए राहुल गांधी, पीएम मोदी को दलित विरोधी बताकर हमलावर भी दिखे...। दरअसल, दलितों पर उमड़ता सियासतदाओं का ये बेशुमार प्यार, 2019 की पटकथा के संवाद सरीखा शोर कर रहा है...2014 के लोकसभा और यूपी विधानसभा चुनाव में दलित वोटों में सेंध लगा चुकी बीजेपी...हर मंच से दलितों को प्राण से प्यारे बताने से नहीं चूक रही है...ये भी इत्तेफाक नहीं कि, खुद मोदी और बीजेपी ने डॉ.अंबेडकर को लेकर विशेष उत्साह दिखाया है... 14 अप्रैल से 05 मई 2018 तक ग्राम स्वराज अभियान भी इसी कड़ी का एक हिस्सा है...इसी कड़ी में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रतापगढ़ जिले के दलित बाहुल्य गांव में चौपाल लगाकर चर्चा की, और दयाराम सरोज नाम के दलित के घर खाने का स्वाद भी लिया...बीजेपी मुखिया अमित शाह से लेकर केशव मौर्या तक सभी दलितों के दरवाजें पर दिखते रहे हैं... 2014 के लोकसभा चुनाव में सत्ता का समीकरण सिद्ध करने में दलितों की अहम भूमिका रही थी...लेकिन बदले माहौल में बीजेपी इस उलझन में है कि, कहीं दलितों की नाराजगी 2019 में उसके लिए महंगी ना पड़ जाए...पहले गच्चा खा चुंकीं इस बार बसपा सुप्रीमो मायावती भी बेहद अलर्ट है...क्योंकि, बहन जी ने दलित वोटों पर अपना हक जताने की लंबी लड़ाई लड़ी है...लिहाजा, किसी और का सेंध लगाना कैसे सह पाएंगी...इसलिए बाकी दलों के दावों नकली करार दते हुए, कभी आरक्षण तो कभी एससी-एसटी एक्ट के बहाने, बहन जी बार-बार दलित समुदाय को साधती रहती हैं...बीते दिनों तो कांग्रेस को भी ये कहकर कटघरे में खड़ा कर दिया था कि, बाबा साहब को कांग्रेस ने भारत रत्न नहीं दिया था...लेकिन अब सवाल ये उठता है कि, आखिर दलित वोटों पर इतना संग्राम क्यों है...दरअसल, देश में 20.14 करोड़ से ज्यादा की दलित आबादी के आगोश में 545 में से लोकसभा की 80 सीटें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं...वहीं 2014 के चुनाव के पन्ने पलटें तो इन 80 सीटों में से 41 पर बीजेपी का कब्जा है...देश में 31.9 फीसदी आंकड़ों के साथ पंजाब सबसे ज्यादा दलित आबादी वाला सूबा है...यहां 34 सीटें दलितों के लिए आरक्षित हैं...वहीं उत्तर प्रदेश में करीब 20.7 फीसदी दलित आबादी है. यहां 17 लोकसभा और 86 विधानसभा सीटें रिजर्व हैं…यहां 17 लोकसभा और 76 विधानसभा आरक्षित सीटों पर कमल खिला था...वहीं हिमाचल में 25.2%, हरियाणा में 20.2%, एमपी में 631.9 % पश्चिम बंगाल में 10.7%, बिहार में 8.2%, तमिलनाडु में 7.2%, आंध्र प्रदेश में 6.7%, महाराष्ट्र में 6.6%, कर्नाटक में 5.6%, तो राजस्थान में दलित आबादी का आंकड़ा 6.1 फीसदी है...जाहिर सी बात है कि, इथनी बड़ी आबादी के लिए सियासी दलों का दिल जोर-जोर से धड़केगा ही...लेकिन अब 2019 से पहले दलितों पर दावेदारी के बीच अब सवाल उठता है कि, क्या वाकई ये मुद्दा देश के दलितों की दशा का है, या दलितों के जरिए केवल सियासत का है...सवाल ये भी उठेगा कि, दलितों पर तो सभी दलों की दावेदारी है...लेकिन 2019 में दलित किसके साथ रहेंगे...?

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