काश ! आज टिकैत होते...

सिर्फ एक आवाज...और हजारों की भीड़ का हूजूम उस एक शख्स के साथ  हो लेता था...खांटी किसान उस इंसान ने, किसान की परेशानी को अपना धर्म समझा...छोटे से सिसौली गांव के उस शख्स ने बड़े-बड़े  साहबों को पानी पिला दिया...वो मन से जितने भोले थे इरादों से उतने ही मजबूत...किसान नेता चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत की आज चौथी पुण्यतिथि है...लेकिन सवाल  ये है कि, आज कौन मरते किसान की लड़ाई लड़ेगा....
 सड़क से लेकर संसद तक...किसानों की बदहाली का शोर... सुनाई तो देता है...लेकिन ना जाने क्यों? आवाज अनसुनी हो जाती है सरकार के दरबार में...शायद आवाज में या तो  दम नहीं....या दिल में किसानों का दर्द नहीं...आज दर्द की इस तासीर में एक तस्वीर तैरने लगी है....चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत...
महेंद्र सिंह टिकैत....उन्हें किसी ने महात्मा कहा...किसी ने मसीहा..लेकिन सच्चाई का ये अलंबरदार, अन्नदाता की आवाज बनकर ही खुश था....दुखी  हुए तो बस  किसान की दुर्दशा पर...लेकन उनके जाने के बाद, आज किसान की सुनने वाला कोई नहीं... हां वोट के समय सुनने वालों की बहुत भीड़ लग जाती है...लेकिन जीतने के बाद वो भी  किसान की समस्या से जी चुरा लेते हैं...अब चाहें आपदा में मरे किसान, विपदा में मरे किसान...किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता....
वो तो चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत थे, किसान की कराहट उनके कलेजे में हूक करती थी....हक और हकूक के लिए सरकारों की चूलें हिला देते थे चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत...तत्कालीन मुख्यमंत्री वीर बहादुर हों या तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी हो किसी के सामने झुकना गवारा नहीं समझा उन्होंने...और  ना जाने कितनी बार ?हुकुमत -ए उत्तर प्रदेश से लेकर हुकुमत-ए-हिंदुस्तान तक को चिरौरी करने पर मजबूर कर दिया, उस खांटी चौधरी ने...काश! आज टिकैत होते...।
बेमौसम बारिश का कहर हो...या भूमि बिल का बवाल...खाद, बीज या बिजली, सवाल तो किसान का ही है....लेकिन उन सवालों पर जवाब पूंछने वाला कोई नहीं है...इस बार भी तो सैकड़ों किसान काल कलवित हो गए...किसानों की आत्महत्या कचोटती होगी उनकी आत्मा को...आज सरकार जमीन छिनने का जाल बुनती हैं.. और  टिकैत जमीन बचाने की लडाई लड़ते थे...वो बड़े जमीदारों की बचाने को लड़ते थे वहीं छोटे भूमिहर किसानों को मजदूरी के चंगुल से बचाने की चिंता रखते थे...मजलूम किसान की लाठी थे चौधरी महेंद्र सिंह...गन्ना किसान भी गुरबत में ना होते आज...काश ! आज टिकैत होते...
इस शख्‍सीयत ने कभी धूप-छांव.. भूख-प्‍यास... लाठी-जेल की परवाह नहीं की...मेरठ कमिश्नरी का धरना हो या नईमा कांड... अपने कदमों को संघर्ष के लिए बाहर निकाला,.. तो फिर कभी पीठ नहीं दिखाई...चौपाल और चारपाई पर बैठकर जो फैसला कर दिया उसके खिलाफ भी कोई कोर्ट कचहरी नहीं गया...सांप्रदायिक सद्भावना की मिशाल महेंद्र सिंह उस वक्त बनकर उभरे..जब मेरठ जातीय संघर्ष की आग में दहक रहा था...वो चौधरी साहब ही थे जिन्होने अल्लाह-अकबर और हर-हर महादेव का नारा बुलंद कर के बंद दरवाजों को खोलने का काम किया...।
 बहरहाल, वैसे तो कोई कमी नहीं है किसानों के नाम पर रोटी सेंकने वाले राजनेताओं की....चुनावी मौसम में हर दल का दिल किसानों के लिए ही धड़कता है...और जब हिस्से में आती है बेरुखी और बेदर्दी, तो किसानों की उम्मीद भरी आंखों में कोई दूसरा टिकैत,  दिखाई नहीं देता...इसलिए तो दिल से निकलता है दर्द....काश ! आज टिकैत होते...
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