कलाम: जो खो गया वो चांद था ।


कलियुग की रामायण का राम चला गया.. मेरे देश का कलाम चला गया... जो देता था एकता का पैगाम वोह कलाम चला गया ....जिनसे हुई दुश्मनो की नींद हराम वोह कलाम चला गया ...जिसने दिया देश को परमाणु सलाम वोह कलाम चला गया क्या बताऊ दोस्तों वतन का सबसे बड़ा हमनाम चला गया ...मेरा कलाम चला गया.. हमारा कलाम चला गया..(साभार)
आधुनिक भारत के सबसे लोकप्रिय राष्ट्रपति, महान भविष्यद्रष्टा, जन-जन  के प्रेरणा स्रोत और अनमोल रत्न सरीखे भारत रत्न डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम का निधन देश के साथ ही मानवता के लिए एक बड़ी क्षति है... उनके निधन से हमारे सार्वजनिक जीवन में सचमुच एक शून्य पैदा हो गया है... साधारण पृष्ठभूमि में पले-बढ़े कलाम तमाम अभावों से दो-चार होने के बावजूद एक  वैज्ञानिक बने फिर एक चिंतक, पथप्रदर्शक और राष्ट्र के सच्चे हितैषी के रूप में देश के सर्वोच्च पद को भी सुशोभित किया....वैसे तो हजारों कहानियां हैं उनकी जो अब किदवंतियां बन गई हैं....पहले रक्षा वैज्ञानिक के तौर पर मिसाइल मैन के रूप में देश के लिए मिसाल बने... राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने राष्ट्र नायक की कमी तो पूरी की ही, जीवन के हर क्षेत्र के लोगों के लिए एक मिसाल भी बने.. कोई यह भी नहीं भूल सकता कि देश को एक सक्षम परमाणु संपन्न राष्ट्र बनाने में भी उन्होंने अद्वितीय योगदान दिया... राष्ट्रपति पद से हटने के बाद भी वह राष्ट्रीय शिक्षक की भूमिका में थे...अंतिम सांस लेने के ठीक पहले वह IIM शिलांग में छात्रों को भविष्य के सूत्र समझा रहे थे...बच्चों-छात्रों और शिक्षकों के बीच उनकी लोकप्रियता इतनी अधिक थी कि करीब-करीब हर विश्वविद्यालय और शिक्षा संस्थान उनके सानिध्य का आकांक्षी था।
डॉ.कलाम हर रूप में एक आदर्श और सच्चे अर्थो मे बिरले थे...कलाम साहब भारतीय मूल्यों में रचे-बसे एक ऐसे शख्स के रूप में उभरे जो भारतीयता के पर्याय बने...उन्होंने न केवल देश को महाशक्ति बनाने का मूल मंत्र दिया, बल्कि लोगों में ये विश्वास भी जगाया कि भारत वास्तव में उन्नति के शिखर पर पहुंच सकता है। उन्होंने देश भर में घूम-घूम कर लाखों छात्रों को प्रेरित करने, उनके सपने जगाने और उन्हें पूरा करने का जो मंत्र दिया उसकी मिसाल मिलनी मुश्किल है... उन्होंने यह भी दिखाया कि अपना काम करते हुए विवादों से कैसे दूर रहा जा सकता है...आज के राजनेता जो कुर्सी छोड़ना नहीं चाहते वो कलाम ही थे जिन्होने दूसरी बार कुर्सी पर बैठना गवारा नहीं समझा...वो कर्मयोगी की तरह अपना काम करते रहे...फिजूल खर्ची के ख्याल से भी दूर रहते थे कलाम साहब...आज देश में धर्म के नाम का धुंआ धुंध फैला रहा है...कलाम साहब का तो जैसे कोई धर्म ही नहीं था सिवाए भारतीय होने के...वो हमेशा कहते भी थे कि गीता और कुरान मेरी दो आंखें हैं...आज हर आंख में आंसू हैं..हर चेहरे पर उदासी है...कट्टर से कट्टर व्यक्ति भी उनका वाचक है...कलाम साहब मरे नहीं वो हमारे दिलों में हमेशा जिंदा हैं और रहेंगे....वो तो अमर हुए हैं...भारत मां का वो सपूत हमारे हाथों में इस देश की उम्मीदों की डोर दे गया है...उन्हे सच्ची श्रद्धांजलि होगी कि हम उस डोर को कमजोर ना होने दें...मजहब और जात-पात से उपर उठक इस देश को बुलंदिों पर पहुंचाए...2020 के कलाम साहब के सपने के साकार करें...
उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हमारे नीति-नियंता उनके सपने का भारत बनाने के लिए प्रतिबद्ध हों। डॉ.कलाम, ये राष्ट्र सदैव आपका ऋणी रहेगा जो कभी चुकाया नही जा सकेगा...।

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