डिग्री पर ही भारी है बेरोजगारी...।

डिग्री पर ही भारी है बेरोजगारी...।

एक कहावत है कि, पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब...अक्सर परिवार वाले बी बच्चों को नसीहत देते वक्त यहीं बात कहते भी हैं...हर कोई पढ़कर बढ़ा आदमी बनना चाहता है...कोई  प्रोफेसर तो कोई इंजीनियर..कोई वैज्ञानिक तो कोई पायलट...ना जाने कितने अरमानों के दरमियान दिए जाते हैं जिंदगी में इम्तिहान तालीम के लिए...और अरमानों में फलसफा बस यही कि, सफल हो जाएं...नाम हो जाएं...लेकिन अगर इतना पढ़ लिखकर भी चपरासी बनना हो तो क्या फायदा इतनी पढ़ाई का...
दरअसल ये पीड़ा इसलिए है कि, ऐसी तमाम तरह की ये डिग्रियां बेरोजगारी पर भारी पड़ गईं...यूपी विधान सभा सचिवालय में, चपरासी के लिए डॉक्टर से लेकर इंजीनियर तक लाइन में लगे हैं....सरकार ने चपरासी पद के लिए इश्तहार निकाला...लेकिन अब सरकार का दिवाला निकला पड़ा है क्योंकि,चपरासी के 368 पदों के लिए 23 लाख से ज्यादा आवेदन आए हैं...इनमें 255 लोग पीएचडी हैं...1 लाख 53 हजार बी टेक, बीए, बीएससी, बी कॉम...25 हजार एमएससी, एम कॉम और एम ए...75 हजार लोग वो भी हैं बारहवीं पास हैं...जबकि सरकार की तरफ से चपरासी पद के लिए केवल दो योग्यताओं का पैमाना तय किया गया था...केवल पांचवी पास हो आवेदक और  उसे साइकिल चलाना आता हो...
 बेरोजगारी की मार हर मार से बड़ी होती है.....तभी तो चतुर्थ श्रेणी की नौकरी के  लिए प्रथम श्रेणी पास भी लाइन में लगे हैं...मजबूरी तो कुछ भी कराती है...कल तक कंधे पर गमछा रखे सचिवालय की जिन कुर्सियों पर साधारण से लोग बैठा करते थे अब विधानसभा सचिवालय के इन गलियारों की बेंचों पर...अब बड़े बड़े विद्वान चपरासी बैठेंगे...कोई डॉक्टर साहब...कोई इंजीनियर...कोई मनोविज्ञान का ज्ञाता...ये भी हो सकता है कि, उनका बॉस उनके बराबर भी पढ़ा लिखा ना हो...वो उनसे कैसे काम कराएगा....डॉक्टर साहब पानी लाइये...फाइल ले जाएये...मेज सही से साफ नहीं हुई...लेकिन 368 पदों के लिए  23 लाख से अधिक अर्जियां...उत्तर प्रदेश का उदाहरण  ये भी बताने के लिए काफी है...कि, मुल्क में कितनी बेरोजगारी बढ़ गई है...इस लिहाज से तो आंकड़े देखने की जरुरत भी नहीं हैं...लेकिन इस सबके दरमियान ये भी दर्द है कि, आखिर हम कहां खड़े हैं....कहां हमारे नौजवान खड़े हैं..कहां इस देश का पढ़ा लिखा युवा खड़ा है...मोटी-मोटी किताबें इसलिए तो नहीं पढ़ीं...लैब में भी बड़े बड़े प्रयोग इसलिए तो नहीं किए ...बड़ी बड़ी डिग्रियां चपरासी बनने के लिए तो हासिल नहीं कीं...नाम के आगे डॉक्टर इंजीनियर इसलिए तो नहीं लगा कि, चपरासी बनना है..सरकार भी परेशान है कि, कैसे इतने लोगों का इंटरव्यू लिया जाए...क्योंकि अगर 10 बोर्ड भी बना दिए जाएं तभ भी इंटरव्यू पूरे होने में करीब 4 साल 1 महीने का वक्त लगेगा...
सवाल ये भी है कि, ये सरकारों की बेरूखी है या व्यवस्थाओं की बदहाली है ...आजादी के इतने सालों बाद भी बेरोजगारी की इस बिसात पर खड़े होकर हम कैसे देश मजबूत करेंगे...कैसे मजबूत अर्थव्वस्था का आधार बनेंगे...इसलिए केवल उत्तर प्रदेश का ये नमूना देखिए आंकड़े मत देखिए....क्योंकि, यहां तो डिग्री पर ही भारी है बेरोजगारी...।

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