अखिलेश की शर्त- संग्राम, सुलह और शर्त


साल 2012 की ही तो बात है...जब चुनावी सरगर्मियों के शोर में अखिलेश यादव ने साफ और स्वच्छ छवि की छाया में जीतकर सरकार बनाई थी...अब आने वाले चुनाव में सरकार के कामकाज को लेकर अखिलेश यादव का चेहरा ही सामने होगा...इसलिए सुलह के फॉर्मूले में अखिलेश यादव ने रखी है अहम शर्त...परीक्षा मेरी तो अधिकार भी मेरा...। जैसे-जैसे घड़ी की सुइयों से समय बदलता रहा...वैसे-वैसे मुलायम परिवार में घटनाक्रम बदलता रहा है...और करीब 100 घंटे से ज्यादा की जद्दोजहद के बाद...समाजवादी परिवार और पार्टी वहीं आकर खड़े हो गए जहां से चले थे...यानि, शिवपाल यादव को फिर वही दर्जा मिलेगा...गायत्री प्रसाद प्रजापति को भी फिर से प्रसाद के रूप में मंत्रालय मिल जाएगा...इसका एलान मुलायम सिंह कर चुके हैं, इसलिए अखिलेश यादव ने उनकी आज्ञा पालन का वचन दिया है...। दरअसल, इस संकट से सबसे ज्यादा कोई हैरान और हलकान है तो वो हैं मुखिया मुलायम सिंह यादव...तमाम मान मनोव्वल के बाद अब शिवपाल यादव ने शिगुफा भी छोड़ा है कि, कल का इंतजार कीजिए...में केवल नेताजी के नेतृत्व में काम करुंगा...लेकिन अखिलेश यादव ने सारी परतों को उधेड़ कर रख दिया है...उनके मुताबिक तो सारे झगड़े की जड़ ये कुर्सी है जिस पर वो बैठे हैं...हालांकि, अखिलेश यादव ने विवाद के तमाम विंदुओं को विराम देने की कवायद के साथ...मुलायम के सुलह वाले फॉर्मूले में एक शर्त रखी है...कैप्टन की भूमिका में आते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने टिकट बंटवारे का अधिकार मांगा है...अखिलेश यादव ने साफ कर दिया कि, आने वाला चुनाव उनकी परीक्षा है...लिहाजा टिकट का अधिकार उनका अधिकार है...अब अधिकार की ये लड़ाई क्या अंगड़ाई लेती है...ये भी बड़ा सवाल है...। बहरहाल, सुलह की तमाम शर्तों के बीच अखिलेश यादव की ये मांग...अभी इस महाभारत की समाप्ति का शंखनाद नहीं है...बल्कि यूं समझिए कि, पिक्चर अभी बाकी है...

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