सियासत का 'जनेऊ' और बीजेपी में 'जनेऊ' संकट !


ये सोलह आने सच है कि, उत्तर प्रदेश में हार और जीत का गुणा-गणित बनाने में, जातियों की जमात अहम किरदार निभाती हैं...इसलिए तो सूबे के करीब 14 प्रतिशत ब्राह्मणो को सत्ता का किंगमेकर माना जाता है...और यही वजह है कि, सूबे में 27 साल से सत्ता शून्य पर खड़ी कांग्रेस...शीला दीक्षित के जरिए उस रिश्ते को जोड़ने की जद्दोजहद में लगी है जो ब्राह्मण मुख्यमंत्री एनडी तिवारी के बाद लगभग टूट गया है... अब करीब 14 फीसदी ब्राह्मण वोट की उलझन को सुलझाने के लिए कांग्रेस ने शीला दीक्षित के जरिए ‘पंडित जी’ (ब्राह्मणों) के दरवाजे दस्तक दी है...कांग्रेस के तमाम ब्राह्मण नेता चंदन तिलक लगाकर मंच सजा रहे हैं...कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश को फतेह करने के लिए अपने सबसे पुराने वोट बैंक ब्राह्मण समुदाय की और रुख किया हैं. कांग्रेस ने प्रशांत किशोर की इसी रणनीति के तहत शीला दीक्षित को दीक्षित को यूपी सीएम का चेहरा बनाया है. अब टिकट बंटवारें में भी कांग्रेस ज्यादा से ज्यादा ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट देगी... इधर अखिलेश यादव के मंत्रिमंडल विस्तार में भी दिखी है चुनावी चिंता...ब्राह्मण चेहरे मनोज कुमार पांडेय, शिवाकांत ओझा की कैबिनेट में वापसी के साथ ही अभिषेक मिश्रा का भी राज्यमंत्री से काबीना के कॉलम में प्रमोशन हुआ है...अब सपा सरकार ने भी ब्राह्मणों की भागेदारी, यूं तो नहीं बढ़ाई है...ब्राह्मण वोटों के संघर्ष में सपा ने भी खुद को दावेदारों में शामिल कर लिया है। दरअसल, 2007 में पूरे यूपी ने ब्राह्मण वोट की उस ताकत को देखा था...जब ब्राह्मण-दलित गठजोड़ की बदौलत बहन जी ने पहली बार पूर्ण बहुमत वाली सरकार का स्वाद चखा था...और 2012 में ब्राह्मणों से दूरी ने, बसपा को सत्ता से दूर कर दिया था..लेकिन अब बहन जी ने फिर ब्राह्मण चेहरे सतीश मिश्रा और रामवीर उपाध्याय को बड़ी जिम्मेदारी देकर अपने इरादे जता दिए हैं...कि, वो फिर से ब्राह्मणों को साथ लेकर चलेगी...अब तो बसपा की हर रैली में नारा लगत रहा है...कि, ब्राह्मण संख बजाएगा और हाथी लखनऊ जाएगा...।
हालांकि इस बार पूरा चुनावी गणित उल्टा नजर आ रहा है...क्योंकि, करीब 90 के बाद से ब्राह्मणों की लंबदार रही बीजेपी, इस बार बैकफुट पर दिखाई दे रही है...खासतौर पर लक्ष्मीकांत वाजपेयी को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने के बाद...एक समय था जब अटल बिहारी वाजपेयी सक्रिय रहते थे तो हाथी के पांव में सबका पांव हो जाता था...लेकिन उनके बाद तो मुलरी मनोहर जोशी जैसे ब्राह्ण नेता भी नेपथ्य में हैं...उपेक्षित हैं....। बहरहाल, एक जाति-समुदाय का...एक साथ किसी दल से जुड़ने का मतलब है सत्ता की चाबी को हासिल करना...और यही वजह है कि, तमाम राजनीतिक दल जजमान सरीखे हो गए हैं...और जनेऊ वालों (ब्राह्मण वोट) के लिए जज्बात जमकर जोर मार रहे हैं...लेकिन सियासत का ये जनेऊ किसके भाग्य को बदलेगा ये अभी भविष्य के गर्भ में हैं...हालांकि, एक सवाल है जो टकटकी लगाए देख रहा है...कि, आखिर पंडित जी किसका बेड़ा पार लगाएंगे...?

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