तलाक...तलाक...तलाक


कितना दर्दनाक होता होगा वो पल...जब केवल एक शब्द से है शादी जैसा रिश्ता दरक जाता...अचानक सबकुछ बदल जाता है..अचानक अजनबी हो जाते हैं...यानि, केवल तीन बार तलाक बोल देना और रिश्ता खत्म कर देना ये तो मनमर्जी ही लगता है....भारत में फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया वेबसाइटों, स्काइप और मोबाइल फोन के जरिए भी तलाक के मामले बढ़ रहे हैं..वहीं ट्रिपल तलाक पर पहली बार केंद्र सरकार ने सख्त रुख अपनाया है...दरअसल, ट्रिपल तलाक के मसले पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देत हुए साफ कहा है कि, ट्रिपल तलाक महिलाओं के साथ भेदभाव की भावना से भरा है... तमाम रीति रिवाजों के रंग में रंगकर... थमा दी जाती है जिंदगी की डोर किसी के हाथ में...तमाम कसमों और गवाहों के सामने जोड़ा जाता है जो बंधन...वही बंधन, एक बार में, तीन बार तलाक कहने पर टूट जाता है...वहीं तलाक के इस तरीके पर पर देश के इतिहास में पहली दफा केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर विरोध जताया है... हलफनामे में केंद्र ने कहा है कि...’पर्सनल लॉ के आधार पर किसी को संवैधानिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता. ट्रिपल तलाक महिलाओं के साथ लैंगिक भेदभाव है. महिलाओं की गरिमा के साथ किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता’...उधर तीन तलाक पर हंगामे के बीच...केंद्र सरकार ने भी कमर कस ली है...और इसी पर केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने ब्लॉग के जरिए केंद्र सरकार की नजर और नीयत साफ करने की कोशिश की है...जेटली ने लिखा है....’ तीन तलाक और यूनिफॉर्म सिविल कोड दोनों अलग मुद्दे हैं, तीन तलाक की संवैधानिक वैधता और आचार संहिता पूरी तरह अलग है, सरकार का नजरिया साफ है पर्सनल लॉ संविधान के हिसाब से होना चाहिए’ हालांकि, तीन तलाक पर मुस्लिम समाज बंटा हुआ है...बड़ी संख्या में उलेमा और अल्पसंख्यक संगठन इसके समर्थन में हैं तो समाज का एक तबके इसके खिलाफ खड़ा है...यानि, तीन तलाक पर...तीन ओर से ही तलवारें खिची हैं...खुद मुस्लिम आंगन में ही आर-पार का आलम है...यानि, एक तरफ तीन तलाक के पक्ष में मुस्लिम संगठन अड़े हैं...तो वहीं दूसरी तरफ इसकी मुखलफत में मुस्लिम महिलाएं खड़ी हैं...और इस बवाल के बीच में खड़ी है केंद्र की मोदी सरकार.. मुस्लिम संगठनों ने भी तीन तलाक के मुद्दे पर केन्द्र सरकार के रुख के विरोध का झण्डा बुलन्द कर दिया है...तमाम संगठनों की तकरीर है कि, तीन तलाक के जरिए समान नागरिक संहिता के मुद्दे को हवा दे रही है सरकार...मुस्लिम महिला पर्सनल बोर्ड और कई सामाजिक संगठन केंद्र सरकार के इस कदम को इंसाफ का तकाजा मान रही हैं...मुंह जबानी तलाक से अलग अब तो स्पीड पोस्ट, व्हाइट्सअप और फेसबुक के जरिए तलाक देने का फैशन सा चल पड़ा है...मुस्लिम महिलाओं के लिए लाइलाज बन गया है ये मर्ज...इसलिए 90 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम महिलाएं तलाक के इस तरीके में बदलाव चाहती हैं... पाकिस्तान और बांग्लादेश समेत, दुनिया के तकरीबन 22 मुस्लिम देशों ने अपने यहां प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से तीन बार तलाक की प्रथा खत्म कर दी है...तीन तलाक कई इस्लामिक देशों में बैन है, पाकिस्तान में 1961 से ट्रिपल तलाक बैन तो वहीं बांग्लादेश में 1971 से ट्रिपल तलाक बैन है मिस्र में 1929 से ट्रिपल तलाक बैन पर प्रतिबंध है...इसके अलावा सूडान में 1935से तो सीरिया में 1953 से ट्रिपल तलाक बैन लगा हुआ है... बहरहाल, कहने को तो एक छोटा सा शब्द है तलाक, लेकिन इसकी तासीर में बदरंग हो जाती है जिंदगी की तस्वीर...तमाम मुस्लिम महिलाओ को अब एक नई सुबह का इंतजार है...क्योंकि, गैरइस्लामी ही नहीं बल्कि, गैरइंसानी है ‘ट्रिपल तलाक’... सवाल ये है कि, जब निकाह के वक्त शौहर और बीवी दोनों की रजामंदी की जरूरत होती है तो फिर तलाक के वक्त क्यों नहीं...?

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