निर्भया को इंसाफ


बात सिर्फ 16 दिसंबर की करें तो ये विजय दिवस के रुप में हमारे लिए गर्व करने का दिन है....लेकिन 16 दिसंबर 2012 भारतीय इतिहास में ये दिन काले पन्ने के रूप में दर्ज है... इस दिन छह दरिंदों ने दिल्ली की सड़कों पर चलती बस में एक 23 साल की लड़की के साथ हैवानियत की सारे हदें पार दी.. भारतीय न्याय व्यवस्था ने इसे 'रेयरस्ट ऑफ द रेयर केस' करार दिया...वहीं उन जख्मों पर अब यानि, 4 साल 5 महीने बाद लगा है मरहम...दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया कांड के गुनहगारों की फांसी की सजा को बरकरार रखा है...इस फैसले की हर तरफ सराहना हो रही है...लेकिन क्या उस घटना के बाद से आजतक सिस्टम और सरकार चेते हैं... 5मई सुप्रीम कोर्ट का आदेश___जिस तरह इस घटना को अंजाम दिया गया, ऐसा लगता है कि, ये दूसरी दुनिया की कहानी है. सेक्सो और हिंसा की भूख के चलते इस तरह के जघन्यातम अपराध को अंजाम दिया गया. लिहाजा इन दोषियों की फांसी की सजा बरकरार रखी जाती है. इस मामले में इन दोषियों की पृष्ठ भूमि कोई मायने नहीं रखती. निर्भयाकांड सदमे की सुनामी है...। वीओ.-- ये देश की सबसे बड़ी अदालत के वो अल्फाज हैं...जो निर्भया के गुनहगारों के लिए गुनाह के लिए गूंजे थे...और इन अल्फाजों की गूंज अब पूरे देश में सुनाई दे रही है...सुप्रीम कोर्ट ने निर्भया के चारों गुनहगारों की फांसी की सजा को बरकार रखते हुए, रहम की हर दलील को सिरे से खारिज कर दिया...इस फैसले के बाद आरोपियों के वकीलों की दलील है कि, महात्मा गांधी के सिद्धांतों की हत्या हुई है...आखिर क्या हुआ था निर्भया के साथ...। 16 दिसंबर 2012... कलंडर की तारीखो में ये कलंक की वो तारिख है...जिसने भेड़िये सरीखी मानसिकता के चलते भारतीय समाज को झकझोर कर रख दिया था...6 दरिंदों ने दरिंदगी की तमाम हदों को पार करके, दिल्ली के साथ पूरे देश को गहरे जख्म दिए थे...निर्भया पर हुई ज्यादती के उन जख्मों को भरा तो नहीं जा सका, लेकिन देश की सबसे बड़ी अदालत ने मरहम जरुर लगाया है...आज उन मां-बाप की आंखों में खुशी के आंसू हैं, जो कल तक गम के सागर में सिसक रहे थे...इस फैसले के बाद हर किसी के शब्द सुप्रीम कोर्ट के लिए नतमस्तक हैं...। बहरहाल, घटना दिल्ली की हो या देश के किसी और कौने की....लेकिन उसके जख्म और दर्द में तो कोई अंतर नहीं होता...सरकारें बदल गईं, कानून बदल गए...लेकिन अपराध और अपराधी कितना बदले...कितना बदला समाज और हमारा सिस्टम...ये सवाल हर बहन, हर बेटी और हर मां पूंछती है...कि, अदालत ने तो अपना फर्ज निभा दिया, आखिर कब चेतेंगे समाज और सरकार…?

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